मैं अब काफी ज्यादा खुल चुकी थी और मैं भूल चुकी थी कि शर्म नाम की भी कोई चीज होती हैं। अब मैं कम से कम 40-50 मर्दों से चुद चुकी थी और अभी भी गिनती जारी ही थी। जिस कारण मेरे बोबो और गाँड का साइज काफी बढ़ गया था। इस कारण मैं अब कहीं भी जाति तो सबका ध्यान मेरे बोबो पर पड़ता ही था। मैं सूट भी टाइट पहनती थी और मेरा बदन भी पतला था पर बोबे काफी बड़े हो गए थे। इस कारण सब मुझे गन्दी नजर से ही देखते थे। पर मुझे इस सबकी परवाह नहीं थी। फिर मैंने टेलर भाभी से कहकर सफेद रंग के सूट सिलवाये जो कि काफी पतले थे। अगर उसके अंदर मैं और किसी रंग की ब्रा पैंटी पहनूं तो वो साफ दिखाई देती थी। फिर वो सूट पहनकर मैंने मम्मी को दिखाया और उसके अंदर मैंने लाल रंग की ब्रा पैंटी पहनी तो कुर्ते से में ब्रा साफ दिख रही थी। फिर मम्मी वो सूट देखकर कुछ नहीं बोली तो फिर वो सूट पहनकर में गांव में जाने लगी। फिर गांव वाले भी मेरे बदन को ध्यान से देखने लगे। यहां तक कि जो मेरी तारीफ करते और मुझे काफी इज्जत देते थे वो लोग भी मेरे बदन को काफी निहारते। मैंने पीछे से सूट का गला भी काफी बड़ा रखवाया था। जिससे की मेरी एक तिहाई पीठ नंगी रहती। तब काफी गर्मी पड़ती थी और पसीना भी काफी आ जाता था जिससे मेरा सूट मेरे बदन से चिपक जाता जिससे मेरी ब्रा और मेरा पेट साफ दिखने लग जाता। 

तब परिवार नियोजन का कार्यक्रम चल रहा था तो लोग शर्म के मारे क्लिनिक नहीं आते थे तो मुझे घर घर जाकर कंडोम देकर आने पड़ते थे और सबको खुलकर बताना पड़ता था। मैं सबको बताती के इसे अपने लिंग पर लगाकर फिर ही सेक्स करें। ये सरकार द्वारा कार्यक्रम चलाया जा रहा था तो कोई मुझे गलत भी नहीं कह सकता था तो मैं बिना किसी शर्म के सबको इसके बारे में खुलकर बताती। फिर ऐसे ही घर घर घूमते घूमते उन मजदूरों के घर आते और कोई मजदूर घर पर होता तो मैं अपने हाथों से उसके लंड पर कंडोम चढ़ाकर उससे चुदवा लेती। फिर मैंने ब्रा पहननी भी छोड़ दी और बस ऐसे ही गांव में घूमती। बिना ब्रा के मेरे बूब बिल्कुल साफ दिखाई देते और लगभग सब गांव के मर्दों ने मेरे बूब देखे होंगे। कभी मुझे पसीना ना भी आया होता तो मैं अपने बदन पर पानी डाल लेती जिससे कि मेरा सूट गीला हो जाता और मेरे बूब दिखने लग जाते। इसमें मुझे काफी मजा आया। मेरा ऐसा रूप देख के पता नहीं कितने गांव के मर्दों ने अपना लंड हिलाया होगा।  

पापा भी मुझे ऐसे देखकर काफी गर्म हो जाते और फिर वो मुझे क्लिनिक ले आते और फिर मेरे कपड़े उतारकर मुझे घोड़ी बनाकर मेरी पैंटी नीचे करके मुझे चोदने लग जाते। सूट में मेरे सिर्फ बोबे ही दिख पाते थे और मेरी गाँड नहीं दिखती थी। तब मार्किट में भी ऐसी ड्रेस नहीं मिलती थी। फिर मैंने थोड़ा दिमाग लगाया और एक ऐसी ड्रेस बनाने के बारे में सोचा जो कि ऊपर से ब्रा जैसी हो और वो घुटनो तक लंबी हो। उसके बाजू नहीं हो और बिल्कुल पतले कपड़े से बनी हो। अब तो ऐसी ड्रेस मार्किट में काफी आसानी से मिल जाती हैं। फिर ये आईडिया लेकर मैं टेलर भाभी के पास गई और उसे इस बारे में बताया। तो वो बोली के बना दूँगी ऐसी ड्रेस। फिर उसने कुछ ही दिनों में एक ऐसी ड्रेस तैयार कर दी। फिर वो मैंने पहनकर देखी तो उसमें से मेरी पूरी बॉडी साफ दिख रही थी और अगर थोड़ा पसीना आया हुआ होता तो फिर वो ड्रेस मेरी बॉडी से चिपक जाती और मैं बिल्कुल नंगी दिखाई देती। फिर मैंने ऐसी और ड्रेस बनाने के लिए कहा। क्योंकि वो पतले कपड़े से बनी थी और जल्दी फट जाती थी। फिर उसने ऐसी कई ड्रेस बना दी। मेरे पास काफी ब्रा पड़ी थी तो उसने उन ब्रा को उन ड्रेस के ऊपर जोड़ दिया और नीचे से ड्रेस घाघरे नुमा बना दी। वो ड्रेस काफी अच्छी बनी और मैं उसमें दिखती भी काफी सेक्सी थी। 

फिर वो ड्रेस पहनकर मैं क्लिनिक के बैठने लगी। मैं उसके नीचे कुछ नहीं पहनती थी तो मेरी पूरी बॉडी अच्छे से दिखाई देती थी। कोई मुझे कह भी नहीं सकता था के मैंने कुछ नहीं पहना हैं और सबके सामने नंगी रहने का मेरा ख्वाब भी सच हो रहा था। 

फिर जो भी क्लिनिक में आता तो मुझे देखता ही रह जाता पर कहता कुछ नहीं। कई बार क्लिनिक पर भीड़ लग जाती तो मैं उन सबके बीच उन कपड़ो में बिना किसी शर्म के घूमती रहती। कई बार पीछे से ड्रेस मेरी गाँड में घुस जाती तो मैं उसे गाँड से नहीं निकालती जिससे मेरी गाँड बिल्कुल साफ दिखाई देती। सब मर्द तो बस मुझे ही देखते रहते और मैं भी काफी खुश थी। फिर मैंने उन ड्रेस के गले को और गहरा करवा लिया जिससे कि मेरे बूब आधे दिखते रहते और पीछे से पीठ भी काफी हद तक नंगी ही रहती। फिर मैं वो ड्रेस पहनने लगी जिसमे की ऊपर ब्रा लगी थी। उनमें तो मेरे बूब के उभार और अच्छे से दिखाई देते थे। मुझे ऐसे देखकर तो पापा गर्म हो जाते और अपना लंड हिलाने लग जाते। फिर जब पापा से बिल्कुल नहीं रहा जाता तो वो कोई बहाना लगाकर मुझे जीप में चढ़ाकर कभी टेलर भाभी के घर तो कभी किसी मजदूर के घर ले जाते और फिर वहाँ मेरी जमकर चुदाई करते। फिर मैं ऐसी ही ड्रेस कई महीनों तक पहनती रही। किसी ने मुझे मेरे मुँह पर तो कुछ नहीं कहा पर गांव में जरूर बात चल गई के मैं ऐसी ड्रेस पहनती हूँ और भी काफी बातें चली पर उन बातों से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था। 

क्लिनिक में काफी कंडोम होते थे तो पापा मुझे कंडोम लगाकर ही चोदते थे और फिर करने के बाद कंडोम इधर उधर फर्श पर ही फेंक देते थे। मैंने पापा से कहा भी था के आप कंडोम इधर उधर मत फेंका करो पर पापा नहीं मानते थे। मैं भी रोज सफाई नहीं कर पाती थी। जिससे कमरे में दुर्गंध भी आने लग जाती थी। पर ऐसे कमरे में चुदाई करने में भी काफी मजा आता था। कमरे से बाहर भी कंडोम पड़े रहते थे और कई बार तो क्लिनिक में रखे डस्टबिन में भी पापा कंडोम डाल देते थे। फिर एक दिन मैंने सफाई की तो एक छोटी बाल्टी भरकर कंडोम इकट्ठे किये मैंने। फिर वो सब मैंने पापा को दिखाए तो फिर पापा मेरी तरफ देखकर मुस्कुराने लगे। फिर मैंने पापा से वो कंडोम दूर कहीं डालकर आने के लिए कहा तो फिर पापा ने वो सब कंडोम क्लिनिक के पास ही डाल दिये। फिर मैं जब क्लिनिक से घर जा रही थी और फिर वो कंडोम देखे तो फिर मैंने पापा से कहा के यहां क्यों डाले हैं। इससे तो सीधा पता लग जायेगा के ये कंडोम हमने ही डाले हैं। फिर हम दोनों बाप बेटी जीप से उतरे और वो सब कंडोम इकट्ठा करके लाये और फिर रास्ते मे खेतो में डाल दिये। 

कई बार जब क्लिनिक में भीड़ काफी बढ़ जाती तो मैं औरतों को चेक करने के लिए अंदर कमरे में ले जाती। फिर वहाँ कई बार फर्श पर तो कई बार टेबल पर यूज़ किये कंडोम पड़े रहते। जिन्हें देखकर वो औरतें हँसने लग जाती। ऐसा मेरे साथ काफी बार होता हैं अब भी। 

गाँव मे इतना नंगापन मचाने के बाद भी मैं नहीं रूकी। फिर मैं जैसे मरीज आते उसी हिसाब से कपड़े  पहनने लगी। जैसे कोई जवान मर्द आता तो मैं बस ऐसी ड्रेस पहनती के जिसमे से मेरा थोड़ा थोड़ा बदन दिखता रहे। फिर कई बार गांव के बूढ़े लोग आ जाते और वो वहीं बैठकर पापा के साथ बातें करने लग जाते तो मैं उनके सामने ऐसी ड्रेस पहनती के जिसमे से मेरे आधे से ज्यादा बूब दिखते रहते और फिर मैं भी उनके सामने बैठकर उनसे खुलकर बातें करती। वो सब पापा की उम्र के ही होते थे। फिर मैं उनके सामने एक छोटा तौलिया लपेटकर चली जाती जो कि नीचे से मेरे घुटनो से काफी ऊपर तक होता और मेरे बूब भी काफी दिखते रहते। फिर कई बार मेरा टॉवल ढीला हो जाता तो ऊपर से सरक जाता और मेरी कमर तक आ जाता जिससे मैं ऊपर से नंगी हो जाती तो वो बस मुझे गौर से देखने लग जाते। फिर मैं हंसते हुए उनके सामने ही अपना टॉवल ऊपर कर लेती या दूसरी तरफ मुँह करके अपना टॉवल फिर से बांध लेती। फिर वो सब चले जाते तो फिर पापा मेरी जमकर चुदाई करते। 

इसके बाद गांव के कई मर्द मेरे पास आते के उन्हें पेशाब करते टाइम जलन होती हैं या पेशाब रुक रुक कर आता हैं या कोई पेट से जुड़ी प्रॉब्लम भी होती तो मैं उसका लिंग चेक करने के लिए अंदर ले जाती। फिर मैं उन्हें अपना लंड दिखाने के लिए कहती तो वो शर्मा जाते। फिर मैं उन्हें समझाती के मैं एक डॉक्टर हूँ मुझसे कैसी शर्म। फिर वो सब मेरी बातों में आ जाते और अपना पायजामा या धोती खोलकर लेट जाते। कभी कभी तो मैं उन्हें पूरा नंगा ही कर लेती। फिर मैं पहले पेन से उनका लंड इधर उधर करती और फिर उन्हें लंड का टोपा दिखाने के लिए कहती तो वो अपने हाथ से अपने लंड की चमड़ी पीछे कर लेते। फिर मैं गौर से देखने लगती। लेकिन वो सही तरीके से नहीं कर रहे हैं ऐसा बहाना बनाकर मैं खुद अपने हाथ से उनका लंड पकड़ लेती और सहलाने लग जाती। फिर जब मैं उनका लंड चेक करने के लिए उन्हें अंदर लाती तो मैं सब कपड़े खोलकर एक टॉवल लपेट लेती और कभी कभी तो मैं ये उनके सामने ही करती। वो नंगे होकर बेड पर लेट जाते और मैं कमरे के एक कोने में जाकर एक पर्दा लगाकर उसके पीछे ड्रेस खोलकर टॉवल लपेट लेती। हालांकि वो पर्दा भी पतला ही था तो उसमें से भी आर पार काफी कुछ दिखता था। फिर मैं जब झुक कर उसका लंड चेक करती तो मेरे बूब नीचे लटक जाते और कभी कभी तो टॉवल से भी बाहर आ जाते हैं। फिर ये सब देखकर उन सबके लंड खड़े हो ही जाते थे। ये देखकर मैं मुस्कुराने लगती तो वो भी हँसने लग जाते। फिर मैं काफी देर तक उनके लंड को चेक करती रहती और फिर मैं उनके लंड की क्रीम से मालिश करती। मालिश करते टाइम मैं उनके लंड को जोर जोर से हिलाती तो उनका पानी निकल जाता। कई बार उनका लंड फुल खड़ा होता तो मैं उन्हें उसे बैठाने के लिए कहती। पर वो बैठ नहीं पाता तो मैं उन्हें हिलाकर पानी निकालने के लिए कहती तो वो अपना लंड हिलाने लग जाते मुझे देखकर। फिर उनके लंड से पानी निकलता तो वो बेड पर और कमरे में इधर उधर बिखर जाता। फिर उनका लंड शांत हो जाता तो फिर मैं चेक करने के बहाने अपने हाथ से हिलाकर दोबारा खड़ा कर देती। फिर ऐसे ही करके मैंने काफी जनो के लंड अपने हाथ से सहलाये। इसमें मुझे और जिनका मैं लंड की जांच करती दोनों को ही मजा आता हैं। 

कई बार तो जब मैं उनके लंड पर क्रीम लगाकर मालिश करती तो मैं दोनों हाथों से जोर जोर से उनके पैरों पर बैठकर उनका लंड हिलाती जिससे मेरा टॉवल भी खुल जाता और फिर मैं नंगी ही उनका लंड हिलाने में लगी रहती। फिर वो झड़ जाते तब भी मैं बेड से नीचे उतरकर उनके सामने फिर से अपना टॉवल बांधती और कई बार तो नंगी ही रहती। 

फिर जब मुझे किसी का लंड पसंद आ जाता तो मैं उसके लंड पर कंडोम चढ़ा के उसका लंड चुत में ले लेती और फिर घोड़ी बन जाती तो फिर वो मेरी चुत और गाँड दोनों की चुदाई करता। फिर मैं उसे ये सब किसी से कहने के लिए मना कर देती। क्योंकी उसका भी परिवार होता और मेरी भी काफी इज्जत थी। तो वो मान जाता और किसी से बाहर कुछ नहीं कहता।

पहले तो मैं ऐसे महीने में एक दो बार ही चुदाई करवाती थी। फिर एक दो की कब दस हो गई और कब 10 से 15, 20, 30 और ज्यादा हो गई पता ही नहीं चला। फिर वो मुझे चोदने के बहाने मुझे दिखाने आ जाते और फिर मेरा मन होता तो मैं उनसे चुदाई करवा लेती। चुदाई से सबसे अच्छी जगह क्लिनिक के पीछे बना कमरा ही था और वो सब भी बाहर नहीं बताते तो वो बस ऐसे ही सोचते रहते जैसे के बस वो ही मेरी चुदाई करते हैं। फिर मेरा मन होता तो मैं उन्हें कमरे में ले जाती और जब मन नहीं होता तो मैं उन्हें ऐसे ही रवाना कर देती। 

फिर कई बात तो ऐसा होता कि वो सब एक के बाद एक आ जाते और फिर मैं उन्हें कमरे में ले जाकर उनसे चुदाई करवाती रहती। कई बार मेरा ज्यादा ही मूड होता तो फिर मैं कमरे में नंगी ही रहती और पापा उन्हें एक एक करके कमरे में भेजते रहते। फिर कभी कभी ऐसे लगता के जैसे ये क्लिनिक नहीं कोई रंडीखाना हो। पर जो भी हो मुझे मजा बहुत आता था। फिर कई बार तो ऐसा होता के बीच मे पापा आकर भी मुझे चोद जाते। मैं उन सबका पानी अपनी गाँड में डलवा लेती थी तो फिर पापा जब मेरी गाँड में करते तो वो पानी बाहर आ जाता जिससे मेरी गाँड से पानी बहने लग जाता। फिर पापा झड़ जाते तो फिर पापा अपनी जीभ से चाटकर सब पानी साफ़ कर देते। पहले तो सिर्फ पापा के यूज़ किये हुए ही कंडोम कमरे में पड़े होते थे लेकिन अब तो सभी कंडोम अलग अलग मर्दों के यूज़ किये हुए होते और उन्हें में कमरे में ही एक बड़ी सी बाल्टी में इकट्ठे करती रहती। वो बाल्टी अब तो काफी जल्दी भर जाती थी। पहले तो वो सब कंडोम मुझे घर घर घूमकर बांटने होते थे जिससे कंडोम की खपत कम ही हो पाती थी। लेकिन अब मुझे भी काफी कंडोम चाहिए होते थे तो मैं और पापा अब शहर के अस्पताल से जीप भरकर कंडोम लाने लगे। जिससे मैं मेरे टारगेट से भी ज्यादा कंडोम लगा देती थी जिससे मेरे बड़े अधिकारी मुझे शाबासी देते और मेरा हौंसला बढ़ाते। 

चुदाई के लिए सबसे सुरक्षित जगह क्लिनिक का कमरा ही था। क्योंकि वहां कोई शक नहीं करता था। उस कमरे और क्लिनिक के बीच मे पहले एक छोटी सी खिड़की थी जिसे पापा ने बंद करवा दिया था। क्योंकि चुदाई के टाइम मेरी सिस्कारियाँ क्लिनिक में सुनती थी। फिर कई लोग तो मुझे सिर्फ देखने के लिए ही कोई न कोई बीमारी का बहाना बनाकर रोज ही क्लिनिक आने लगे। ऐसे लोगो को मैं और पापा जल्द ही पहचान लेते। ऐसे लोगों में छोटो से ज्यादा बड़े बुजुर्ग थे। इनमें कुछ तो पापा से भी ज्यादा उम्र के थे।   इस कारण क्लिनिक पर काफी भीड़ रहने लगी तो मैं पहले जैसे ही कपड़े पहनने लगी। जिसमे से कुछ दिखाई नहीं देता। लेकिन फिर भी थोड़े दिन तक तो ऐसा ही चलता रहा और फिर धीरे धीरे भीड़ काफी कम हो गई। फिर पापा कहते के तुम तो पूरे कपड़ो में भी बहुत कामुक दिखती हो। इसका कारण मेरे बूब और गाँड थी। क्योंकि चुदाई के टाइम मेरे पूरे बदन की तो कसरत हो जाती थी बस ये दो चीजें ही ज्यादा दबाने से बढ़ते ही जा रहे थे। मैं वैसे भी टाइट सूट पहनती थी और वो सूट भी कुछ महीनों में ही इतने टाइट हो जाते के वो पहने ही नहीं जाते थे और जबरदस्ती पहनती तो फट जाते थे। इस कारण हर 6 महीनों में मुझे नए सूट सिलवाने ही पड़ते थे। 

इसके अलावा मैं मेरे बड़े अधिकारी डॉक्टर को भी पटाकर रखती थी। जिससे कि मुझे ज्यादा से ज्यादा कंडोम और दवाइयां मिल जाते थे। कई बार तो डॉक्टर बस मुझे देखकर ही मुझ पर मेहरबान हो जाया करता था तो कभी कभी उसे मैं अपनी चुत और गाँड का स्वाद चखा देती। अगर डॉक्टर के साथ उसकी फैमिली आई होती तो मैं डॉक्टर के साथ हॉस्पिटल में ही कर लेती वरना मैं डॉक्टर के साथ उसके घर पर करती। मैं हर हफ्ते हॉस्पिटल जाती तो डॉक्टर से जरूर चुदकर आती। अगर डॉक्टर घर पर करता तो मैं शनिवार को डॉक्टर के घर पर चली जाती और फिर पूरी रात को उसके साथ करती और फिर अगले दिन शाम तक वापिस आ जाती। इस तरह मैं अब तक कई डॉक्टरों से चुद चुकी थी।

इस तरह मुझे चोदने वालो की संख्या दिनों दिन बढ़ती ही जा रही थी। 

फिर जिनके बच्चे नही हो रहे थे ऐसे लोग भी मेरे पास काफी आते थे। फिर मैं उनसे उनके चुदाई करने के तरीके पूछती और वो पीरियड आने के कितने दिन पहले या बाद में चुदाई करते हैं। ये सब मुझे जानना होता था। फिर अगर उनकी बातों से मुझे ठीक से पता नहीं चलता तो मैं उन्हें मेरे सामने ही चुदाई करने के लिए कहती। जाहिर सी बात हैं वो मेरे सामने करने के लिए जल्दी से तैयार नहीं होते थे। फिर मैं उन्हें समझाती और कहती के अगर बच्चा चाहिए तो ये सब करना पड़ेगा। फिर वो मान जाते। फिर मैं उन्हें क्लिनिक के कमरे में ही करने के लिए कहती। अगर उन्हें ठीक लगता तो वो वहीं कर लेते नहीं तो मैं उनके घर चली जाती और फिर हम तीनों एक कमरे में चली जाती और फिर वो वहाँ करते। मेरे सामने उन्हें करने में शर्म आती और कई मर्दों का तो खड़ा ही नहीं हो पाता था तो मैं उनके सामने पतले कपड़े पहन लेती जिससे कि मेरा बदन साफ दिखता। जिससे कि मुझे देखकर वो नहीं शर्माते और मर्दों के लंड भी खड़ा हो जाता। फिर वो मेरे सामने कर लेते। अगर वो गलत कर रहे होते तो मैं उन्हें सही तरीका बता देती जिससे कि एक महीने में ही वो प्रेग्नेंट हो जाया करती। जिससे वो काफी खुश होते। एक बार की चुदाई में तो औरत के प्रेग्नेंट होने के चांस कम ही होते थे तो वो मेरे सामने कई बार चुदाई करते थे। जिससे हम आपस मे काफी खुल जाते। फिर मैं तो उनके सामने बिल्कुल नंगी ही रह लेती। मुझे नंगी देखकर तो मर्दों के लंड पूरा खड़ा हो जाता और फिर वो अपनी बीवियों की जमकर चुदाई करते। फिर उन्हें करता देख मैं भी काफी गर्म हो जाती तो मैं भी चुत में उंगली करने लग जाती।

फिर कई औरतें मुझसे पति के बारे में पूछती तो मैं कहती के वो फ़ौज में हैं और घर कम ही आ पाते हैं। फिर हम और भी काफी बातें करते। जिससे कि कई पति और पत्नी के साथ मेरी दोस्ती हो गई। फिर जब उनकी औरत प्रेग्नेंट हो जाती और उसके पति का लंड मुझे पसंद आ जाता तो फिर मैं उसके सामने ही उसके पति से चुदाई करवा लेती। फिर कई बार तो मर्द मुझे और अपनी बीवी की एक साथ चुदाई करता जिससे की हम तीनों को काफी मजा आता। फिर वो कहते के अब उन्हें मेरे बिना मजा ही नहीं आता तो वो मुझे कई बार अपने घर बुला लेते और फिर हम मिलकर चुदाई करते। फिर चुदाई के बाद मैं उस औरत के पति से मजाक में कहती के तुमने तो दूसरी औरत के मजे ले लिए अब अपनी बीवी को भी किसी दूसरे मर्द के मजे दिलवाओ। फिर कुछ तो इस बात को मजाक में ही टाल देते। लेकिन कुछ औरतें इसे गंभीर रूप से लेती और वो मुझसे पूछती के वो किससे कर सकती हैं। फिर उनके पति के सामने ही मैं उन्हें बताती के वो किसी से भी कर सकती हैं। अगर घर के बाहर करना हैं तो ऐसे आदमी को ढूंढ़ो जो कि किसी और को इस बारे में न बताए। वो तुम्हारे घर का नौकर या कोई पड़ोसी भी हो सकता हैं। फिर मैं बोली के घर के बाहर करने में हमेशा खतरा बना ही रहता हैं किसी और को पता चल जाने का। इसका एक सुरक्षित उपाय भी हैं। फिर वो मुझसे पूछती के वो क्या हैं। फिर मैं उन्हें बताती के घर मे तुम्हारे जेठ, देवर, ससुर आदि लोग होते है। कई बार होता हैं के जेठ की बीवी किसी कारण से मर गई होती हैं तो तुम अपने जेठ से कर सकती हो। अब तुम्हारा जेठ तो किसी को बाहर जाकर ये सब बताने से रहा और तुम्हारे पति को भी इसमें कोई एतराज नहीं होगा। इससे तुम घर मे रहकर दो दो मर्दों से मजे कर पाओगी। तुम शादी होने से पहले तक अपने देवर से भी कर सकती हो। फिर शादी के बाद अगर देवर अपनी बीवी को मना लेता हैं तो फिर उसकी बीवी तुम्हारे पति से कर लेगी और तुम देवर से। मेरी ये बात काफी लोगो को पसंद आई। फिर मैं बोली के किसी की सास नहीं होती तो बेचारे ससुर अकेले रह जाते हैं तो तुम ससुर से भी कर सकती हो। फिर वो बोलती के ससुर से कैसे करेंगे। फिर मैं बोली के ससुर भी मर्द ही हैं और तुम एक औरत। अगर तुम ससुर को खुश कर दो तो ससुर तुम्हे सोने चांदी के गहने, पैसे आदि सब कुछ देंगे। ये सुनकर वो सब औरतें खुश हो जाती। मेरा काम तो बताने का था। फिर वो सब ट्राय करने लग जाती। पर ज्यादा तो नहीं पर कुछ औरतें इसमें कामयाब हो गई। उनमें से कुछ बाहर करने लगी तो कुछ अपने घर मे ही अपने जेठ, देवर और ससुर को पटाकर करने लगी। उनसे करने के बाद जब मैं उनसे मिली तो वो काफी खुश थी और बोली के इसमें इतना मजा आता हैं ये तो हमने सोचा भी नहीं था। फिर मैं कहती के ये मजा अब बढ़ेगा ही घटेगा नहीं। 

मैं जिस मर्द से भी करती वो मर्द मुझे काफी पसंद करने लग जाता था। इतना पसंद करने लग जाता था के वो मेरा पेशाब भी पी लेता था। पेशाब तो क्या वो मेरी टट्टी भी खा लेते थे। और तो और मेरे पापा भी मेरी टट्टी और पेशाब को नहीं छोड़ते थे। वो मेरे पेशाब की बोतलें घर पर भरकर रखते थे और वो पेशाब ग्लास में डालकर दारू के जैसे पीते थे और फिर मेरी चुदाई करते थे। इसके अलावा पापा मेरी ताजी टट्टी को सूंघते और फिर उसे खाते भी थे। कई बार जब पापा ज्यादा ही गर्म हुए होते तो वो मुझे अपने मुंह पर ही बैठा लेते और मेरी गाँड का सारा टट्टी अपने मुँह में भर लेते थे। फिर मैंने कई और मर्दों को भी अपना पेशाब और अपनी टट्टी टेस्ट करवाई तो फिर वो मुझसे मेरी टट्टी और पेशाब मांगने लगे। वो कहते के जब मैं उनके पास नहीं होती तो वो मेरे पेशाब और टट्टी खाकर ही काम चला लेंगे। फिर मैं जब भी उनके पास जाती तो एक लिफाफे में अपनी टट्टी डालकर ले जाती और वो मेरे पेशाब की बोतलें भर लेते। पापा तो घर के पूजा घर मे मेरे पेशाब को लौटे में डालकर रखते और फिर पूरे घर मे उसका छिड़कते। ये देखकर मुझे काफी हंसी आती। ज्यादा पेशाब आये इस चक्कर मे पानी भी काफी पीती। मुझे पेशाब करने के लिए टॉयलेट भी नहीं जाना पड़ता हैं। जब मैं घर पर होती हूँ और मुझे जब भी पेशाब आता हैं तो मैं लौटा लेकर आंगन में ही या बेड पर बैठकर अपने पेशाब से लौटे को भर देती हूँ और जब मुझे फ्रेश होना होता हैं तो तब भी ऐसा ही करती हूँ। कई बार तो पापा अपने हाथ मेरी गाँड के नीचे कर लेते हैं और फिर मैं उनके हाथों पर ही अपनी सारी टट्टी कर देती हूँ और फिर पापा अपने मुँह से मेरी गाँड चाटकर साफ कर देते हैं। इस सब मे मुझे भी बहुत मजा आता हैं। पापा के अलावा भाई और काका भी मेरा और मम्मी की टट्टी खाते और पेशाब पीते। भाई और काका तो मम्मी के दीवाने है। 

इस प्रकार मेरी जवानी के मैं खुद भी काफी मजे ले रही थी और बाकी लोगो को भी मजे दे रही थी। मैंने जिंदगी में जितनी बार चुदाई करवाई हैं उतनी तो शायद किसी रंडी ने भी नहीं करवाई होगी। 

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